एक रैंक, एक पेंशन (ओआरओपी) के मसले पर हुए विरोध प्रदर्शन ने सेना और राजनेताओं तथा नौकरशाही के बीच व्याप्त आपसी विश्वास को साफतौर पर उजागर कर दिया। सरकार के लिए यह दोहरी पराजय थी। उसे समझौते की कीमत 18,000-22,000 करोड़ रुपये के रूप में चुकानी होगी जबकि पूर्व सैनिकों की मांगें खत्म नहीं होने वाली। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ओआरओपी आंदोलन की मूल प्रवृत्ति को समझने में नाकाम रही। यह पैसे की मांग नहीं बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के समक्ष भेदभाव को लेकर विरोध की अभिव्यक्ति अधिक है। कई वरिष्ठï सैनिकों ने मुझसे कहा है कि अगर आईएएस और विदेश सेवा अधिकारियों (आईएफएस) को दिए जाने वाले ओआरओपी लाभ समाप्त कर दिए जाएं तो वे भी यथास्थिति स्वीकार करने को तैयार हैं।
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