7वां वेतन आयोग : न्यूनतम वेतन वृद्धि की घोषणा आम—चुनावों से पहले सम्भव
वर्तमान केन्द्र सरकार का कार्यकाल का अब अन्तिम 1 वर्ष ही बाकी रह गया है। वर्ष 2019 के अप्रैल—मई माह में आम चुनाव सम्भावित है। जैसे—जैसे चुनावों का समय नजदीक आ रहा है एक बार फिर से 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों से अलग वेतन वृद्धि से सम्बन्धित न्यूज़ मिडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी कड़ी में सेन टाईम्स ने यह दावा किया है कि केन्द्र सरकार करीब 1 करोड़ केन्द्रीय कर्मियों/पेन्शनरों को बढ़े हुए वेतन एवं पेन्शन का लाभ आम चुनावों से पहले दे सकती है।

इसके पूर्व 7वें वेतन आयोग ने पिछले 70 वर्षों में सबसे कम 6ठे वेतन आयोग के मूलवेतन में करीब 14.27 प्रतिशत की वृद्धि की सिफारिश की थी जिसे केन्द्रीय कैबिनेट ने 29 जून 2016 को मंजूरी दी थी।
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7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सरकार ने 6ठे वेतन आयोग के वेतन में 2.57 गुणा फिटमेंट फैक्टर लागू करते हुए न्यूनतम मूल वेतन 7000 से बढ़ाकर 18000 करने का आदेश जारी किया था।
केन्द्रीय कर्मियों के केन्द्रीय यूनियनें फिटमेंट फैक्टर में बढ़ोत्तरी कर इसे 3.68 करने तथा न्यूनतम मूल वेतन 26000 करने की मांग करते रहे हैं। अपने मांगों के समर्थन में केन्द्रीय यूनियनें 11 जुलाई 2016 से अनिश्चतकालीन हड़ताल करने की धमकी भी दिए थे परन्तु वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली के दिनांक 30 जून 2016 को दिए गए आश्वासन के बाद यूनियनों ने हड़ताल को स्थगित किया था।
श्री जेटली ने 19 जुलाई 2016 को राज्य सभा में भी अपने आश्वासन को दुहराया था।
इसी बीच सितम्बर 2017 में सरकार ने नेशनल अनोमली कमिटि (एनएसी) का गठन कर दिया। सरकार के इस कदम को मिडिया ने न्यूनतम वेतन वृद्धि के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम के रूप में लिया तथा दावा किया कि न्यूनतम वेतन वृद्धि का मामला अब एनएसी देखेगी तथा उसकी रिपोर्ट के बाद ही इस मामले पर कोई निर्णय लिया जाएगा।
मिडिया की इस खबर का खण्डन करते हुए 30 अक्टूबर 2017 को डिपार्टमेन्ट आफॅ पर्सनल एण्ड ट्रेनिंग (डीओपीटी) ने एक आदेश जारी किया और यह स्पष्ट कर दिया कि वेतन वृद्धि का मामला वेतन विसंगति नहीं है अत: यह नेशनल अनोमली कमिटि के कार्यक्षेत्र में ही नहीं आता।
करीब 2 वर्ष बीत जाने के बाद भी केन्द्रीय कर्मियों की मांगों पर सरकार की ओर से कोई कार्यवाइ होते नहीं दिख रही है। यूनियनें इसे समझौते के उल्लंघन के रूप में देख रही हैं।
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सेन टाईम्स ने सूत्रों के आधार पर यह भी दावा किया है कि कोई निर्णय लेने में विलम्ब केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा वित्त मंत्री के आश्वासन पर त्वरित कार्यवाई न किए जाने के कारण हो रही है। सरकार के स्तर पर इस बात को महसूस किया जा रहा है कि वेतनभोगी वर्ग में इस देरी की वजह से काफी नाराजगी है तथा इसी नाराजगी को दूर करने के लिए सरकार 2019 में आम—चुनावों से पहले इस विषय पर कोई सकारात्मक निर्णय ले सकती है।
Source: Govempnews.com
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